नागपुर पुराने और नए का एक आकर्षण मिश्रण है। भारत में नागपुर ‘ऑरेंज सिटी या नारंगी नगर’ के नाम से जाना जाता है। क्योंकि यहां उगाए जाने वाले संतरों का एक व्यापार केंद्र है। मुंबई और पुणे के बाद महाराष्ट्र का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। पूर्व में नागपुर भोंसले शासकों की राजधानी थी और अब विदर्भ क्षेत्र का केंद्र बिंदु है। नागपुर शहर का नाम नाग नदी के नाम पर पड़ा है। नागपुर के शहरी डाक टिकट पर अभी भी एक सांप की छवि बनी हुई है। यह शहर 310 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। नागपुर नवागांव राष्ट्रीय उद्यान और ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व का शुरुआती बिंदु है जहां महाराष्ट्र के इस पूर्वी भाग में वन जीवन के प्रति उत्साही लोगों का तांता लगा रहता है।
दर्शनीय स्थल
केंद्रीय संग्रहालय
महाराष्ट्र के सबसे प्रसिद्ध संग्रहालयों में इस संग्रहालय में पुरातत्व, कला, प्राकृतिक इतिहास और भूविज्ञान से संबंधित नमूनों का खजाना निहित है। यह सोमवार को छोड़कर सभी दिन खुला रहता है।
अंबाजारी झील और गार्डन
शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थित यह झील अपनी प्राकृतिक सुंरदता के लिए प्रसिद्ध है। चारों ओर से खूबसूरत बगीचों से घिरी इस झील में नौकायन का आनंद लिया जा सकता है। झील के संगीतमय फव्वारे इस झील की सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं। झील के साथ ही एक बेहद खूबसूरत बगीचा है जिसे नागपुर के सबसे सुंदर स्थलों में शामिल किया जाता है।
पोद्दारेश्वर राम मंदिर
इस मंदिर का निर्माण राजस्थान के पोद्दार परिवार के श्री जमुनाधर पोद्दार ने 1923 ई. में करवाया था। मंदिर में भगवान राम और शिव की प्रतिमाएं स्थापित हैं। सफेद संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर से बने इस मंदिर में खूबसूरत नक्कासी की गई है। राम नवमी को होने वाली राम जन्मोत्सव शोभायात्रा के दौरान यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं।
सीताबुल्दी फोर्ट
सीताबुल्दी फोर्ट नागपुर शहर में एक महत्वपूर्ण स्मारक है। यह भारतीय इतिहास में एक ऐतिहासिक मील के पत्थर के रूप में विधमान है। यह किला ट्विन पहाड़ों के बीच में स्थित है। एक ब्रिटिश अधिकारी ने इस किले को 1857 में सिपाही विद्रोह होने के आसपास ही बनवाया था। यह किला उन शहीदों की यादें को संजोए हुए है जो इस विद्रोह में अपना जीवन खो बैठै थे।
टेकड़ी गणेश मंदिर
नागपुर का गणेश टेकड़ी मंदिर 175 साल पुराना है। हर साल यहां गणेश चतुर्थी पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है जिसमें शामिल होने के लिए देशभर से भक्त आते हैं। मान्यता है कि यहां आने वालों की मुराद गणपति जरूर सुनते हैं।
दीक्षाभूमि
पश्चिमी नागपुर में रामदास पीठ के निकट दीक्षाभूमि स्थित है। इसी स्थान पर 14 अक्टूबर 1956 को भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। तब से यह स्थान बौद्ध तीर्थस्थल के तौर पर जाना जाता है। इस स्थान पर एक मेमोरियल भी बना हुआ है। सांची के स्तूप जैसी एक शानदार इमारत का यहां निर्माण किया गया है। इस इमारत के प्रत्येक खंड में एक साथ 5000 भिक्षु ठहर सकते हैं।
अदासा
यह नागपुर का एक छोटा-सा गांव है जो नागपुर से 27 किलोमीटर दूर है। यह हिंदू धर्म का एक बड़ा केंद है जो पौष के महीने में तीर्थ यात्रियों को आकर्षित करता है। यहां अनेक प्राचीन और शानदार मंदिर देखे जा सकते हैं। यहां के गणपति मंदिर में भगवान गणेश की एकल शिलाखंड से बनी प्रतिमा स्थापित है। अदासा के समीप ही एक पहाड़ी में तीन लिंगों वाला भगवान शिव को समर्पित मंदिर बना हुआ है। माना जाता है कि इस मंदिर के लिंग अपने आप भूमि से निकले थे।
रामटेक
नागपुर से रामटेक 48 किलोमीटर दूर है। कहा जाता है है कि यहां भगवान राम और उनकी पत्नी सीता के पवित्र चरणों का स्पर्श हुआ था। यहां की पहाड़ी के शिखर पर भगवान राम का मंदिर बना हुआ है जो लगभग 600 साल पुराना माना जाता है। रामनवमी पर्व यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। संस्कृत कवि कालिदास के मेघदूतम में इस स्थान को रामगिरी कहा गया है। इसी स्थान पर उन्होंने मेघदूतम की रचना की थी। पहाड़ी पर कालिदास का समर्पित एक स्मारक भी बना हुआ है।
कैसे पहुंचे
नागपुर भारत के सभी प्रमुख शहरों से सड़क, रेल एवं हवाई यात्रा से जुड़ा हुआ है।