महाराष्ट्र में शिवसेना के अंदर हुई बगावत और उससे उत्पन्न राजनीतिक संकट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि यह मुद्दा एक मुश्किल संवैधानिक सवाल है, जिसका फैसला करना ही होगा, क्योंकि इसका देश की राजनीति पर काफी गंभीर प्रभाव होगा।
मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने एकनाथ शिंदे धड़े की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे की दलीलों पर असहमति व्यक्त की। कोर्ट ने कहा, यह मुद्दा केवल एक अकादमिक कवायद नहीं है।
नबाम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर मामले की दी गई दलील
मामले की सुनवाई के दौरान शिंदे गुट की ओर से शीर्ष अदालत के 2016 में नबाम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर मामले की दलील दी गई। शिंदे गुट के वकील ने कहा, डिप्टी स्पीकर किसी विधायक को आयोग्य नहीं ठहरा सकते हैं।
हालांकि, उद्धव गुट ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि यह मामला रेबिया केस के तहत नहीं आता है, बल्कि यह संविधन के 212 अनुच्छेद के तहत मामला बनता है। दोनों पक्षों पर गंभीर प्रभाव. शीर्ष अदालत ने कहा, यह एक कठिन संवैधानिक मुद्दा है, क्योंकि दोनों स्थितियों के परिणामों का राजनीति पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
आसान भाषा में समझें तो कोर्ट ने 2016 के नाबाम रेबिया मामले की दोनों स्थितियों को उदाहरण देते हुए कहा कि अगर नाबाम रेबिया मामले में सुनाए गए फैसले को इस स्थिति में लागू किया जाता है तो यह एक दल से दूसरे दल में मानव संसाधन के स्वतंत्र आवाजाही की अनुमति देता है।
वहीं, दूसरी स्थिति यह है कि राजनीतिक दल का नेता, जो अपना एक बड़ा गुट खो चुका है, वह विधानसभा अध्यक्ष को कहकर राजनीतिक यथास्थिति बरकरार रख सकता है और गुट छोड़ने वाले विधायकों को अयोग्य करार दिया जा सकता है। क्या है नबाम रेबिया मामला.
2016 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने अपने निर्ण में कहा था कि अगर विधानसभा स्पीकर को पद से हटाने की नोटिस लंबित है तो वह विधायकों की अयोग्यता पर फैसला नहीं कर सकता है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए 14 विधायकों को अयोग्य ठहराने के फैसले को पलट दिया था और प्रदेश में फिर से कांग्रेस सरकार को बहाल कर दिया था।
बता दें, कोर्ट ने यह टिप्पणी एकनाथ शिंदे बनाम उद्धव ठाकरे गुट के मामले में की है। शिंदे गुट का तर्क है कि ठाकरे गुट ने विधायकों की अयोग्यता की मांग की मांग तब की थी जब महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि सीताराम जिरवाल को हटाने के लिए शिंदे समूह का एक नोटिस सदन के समक्ष लंबित था।