सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल 2025 को तमिलनाडु सरकार बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा
10 विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए भेजने को “असंवैधानिक” और “गैरकानूनी” करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि राज्यपाल द्वारा दोबारा पारित
विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजना संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लंघन है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि विधानसभा द्वारा 18 नवम्बर 2023 को पुनः पारित विधेयकों को उसी दिन से राज्यपाल की स्वीकृति प्राप्त मान लिया जाएगा।
ये विधेयक जनवरी 2020 से अगस्त 2023 के बीच राज्य विधानसभा द्वारा पारित किए गए थे। वे काफी समय से लंबित थे। कोर्ट ने कहा कि विधानसभा द्वारा
दोबारा पारित किए गए विधेयकों पर राज्यपाल को तुरंत सहमति देनी थी, और राष्ट्रपति को भेजने का उनका कदम गलत था। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की
पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग करते हुए इन 10 विधेयकों को 18 नवंबर 2023 को स्वीकृत मान लिया।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति द्वारा इन विधेयकों पर की गई कोई भी कार्रवाई, जिसमें सात को अस्वीकार करना और दो पर विचार न करना शामिल है, कानूनी रूप से अमान्य है।
क्या कहता है संविधान?
संविधान के अनुसार, राज्य विधानसभा में पारित किसी विधेयक को राज्यपाल के पास मंज़ूरी के लिए भेजा जाता है। राज्यपाल उसे मंजूरी दे सकते हैं, अस्वीकार कर सकते हैं,
या संशोधन के लिए लौटा सकते हैं। लेकिन यदि विधानसभा उसे दोबारा पारित करती है, तो राज्यपाल उस पर पुनः विचार करने या राष्ट्रपति को भेजने का अधिकार नहीं रखते- उन्हें अनिवार्य रूप से मंजूरी देनी होती है।
गवर्नर की कार्रवाई ‘गैरकानूनी’
तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह तर्क रखा कि राज्यपाल द्वारा दोबारा पारित बिलों को राष्ट्रपति के पास भेजना न केवल अवैध है बल्कि राज्य सरकार के अधिकारों में हस्तक्षेप भी है। कोर्ट ने यह स्वीकारते हुए कहा कि राष्ट्रपति द्वारा बाद में किए गए सभी कार्य “non est in law” यानी कानून की दृष्टि से अस्तित्वहीन माने जाएंगे।