भारत में पहाड़ी गुफाओं का संबंध आदि काल से है। यह कभी ऋषि-मुनियों के लिए यज्ञ स्थली रहे तो कभी राजाओं और सुल्तानों की सेना के लिए एक पड़ाव। गुफाओं के अंदर चित्रित की गई उत्कृष्ट चित्रण व शिल्पकारी हमें भारत के इतिहास से संपर्क साधने का मौका देती हैं। इन गुफाओं का रहस्यमयी होना हमेशा से शोधकर्ताओं के लिए एक शोध का विषय रहा है। आज भी लोग इन गुफाओं के बारे में जानने के लिए लालायित रहते हैं। ऐसी ही एक जगह है भीमबेटका जो अपने गुफाओं के लिए विश्वविख्यात है।
मध्यप्रदेश के भोपाल से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भीमबेटका में आज सैकड़ों अद्भुत गुफाएं हैं, जो आदि-मानव द्वारा बनाए गए शैल चित्रों और शैलाश्रयों के लिए के लिए प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि इनका संबंध ‘मध्य पाषाण’ काल से है। यहां की दीवार, लघुस्तूप, भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर हजारों साल पुराने हैं। भीमबेटका का संबंध महाभारत के भीम से माना गया है। यहां की अधिकतर गुफाएं पांडव पुत्र भीम से संबंधित हैं। भीमबेटका का उल्लेख पहली बार भारतीय पुरातात्विक रिकॉर्ड में 1888 में बुद्धिस्ट साइट के तौर पर आया है। गौरवशाली इतिहास होने की वजह से भीमबेटका गुफाओं को 2003 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल के रूप में मान्यता दी गई।

विंध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुई भीमबेटका गुफाओं में प्राकृतिक लाल और सफेद रंगों (कहीं-कहीं पीला और हरा रंग भी प्रयोग हुआ है) से वन्यप्राणियों के शिकार दृश्यों के अलावा घोड़े, हाथी, बाघ आदि के चित्र उकेरे गए हैं। इन चित्रों में से यह दर्शाए गए चित्र मुख्ये हैं-नृत्यभ, संगीत बजाने, शिकार करने, घोड़ों और हाथियों की सवारी, शरीर पर आभूषणों को सजाना आदि। कुछ गुफाओं में शेर, सिंह, जंगली सुअर, हाथियों, कुत्तों और घड़ियालों को भी इन तस्वीरों में चित्रित किया गया है। यहां के आवासों की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई हैं, जिसे देखकर ऐतिहासिक संस्कृति की झलक मिलती है।
कैसे पहुंचें:
भीमबेटका के लिए नजदीकी एयरपोर्ट भोपाल (45 किलोमीटर) है। आप दिल्ली, ग्वालियर, मुंबई, इंदौर से भोपाल आसानी से पहुंच सकते हैं। अगर आप रेल से जाना चाह रहे हैं तो आपके लिए भोपाल ही एक उपयुक्त जगह है, जहां से आप भीमबेटका बस और टैक्सी के जरिए पहुंच सकते हैं।

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