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India Rupee Crash: एशियाई करेंसी बाजार में भूचाल, रुपये में रिकॉर्ड तोड़ गिरावट…See More

भारतीय रुपया सोमवार सुबह डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर फिसल गया. शुरुआती कारोबार में रुपया 88.49 तक गिरा, जबकि पिछले सत्र में यह 88.31 पर बंद हुआ था.

एशियाई करेंसीज की कमजोरी और अमेरिकी डॉलर की मजबूती ने रुपये को दबाव में डाला. इसके अलावा अमेरिकी टैरिफ और H1B वीजा फीस में $100,000 की बढ़ोतरी ने

भी रुपये पर दोहरा असर डाला है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि रुपया 87.90-88.00 के स्तर पर सपोर्ट पा सकता है.

इस पर मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) अनंथा नागेश्वरन ने सीएनबीसी टीवी18 के साथ खास बातचीत में बताया कि रुपये की हालिया कमजोरी को लेकर चिंता

जताने से इनकार किया है. उनका कहना है कि भारत के पास पर्याप्त फॉरेक्स रिजर्व और कम बाहरी कर्ज है, जिससे करेंसी पर बड़ा खतरा नहीं है.

उन्होंने साफ किया कि सीमित स्तर की कमजोरी से एक्सपोर्ट्स को फायदा भी मिलता है. वहीं, उन्होंने बॉन्ड मार्केट और महंगाई को लेकर भी भरोसा जताया कि

भारतीय बॉन्ड निवेशकों के लिए आकर्षक हैं और महंगाई अगले साल के अंत तक काबू में रहेगी. भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) अनंथा नागेश्वरन

ने रुपये की गिरावट पर सकारात्मक रुख अपनाया है. उन्होंने कहा कि रुपया हाल में भले ही कमजोर दिखा हो, लेकिन भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा

भंडार और कम बाहरी कर्ज होने के कारण करेंसी को लेकर कोई बड़ी चिंता नहीं है. बॉन्ड यील्ड पर बात करते हुए CEA ने कहा कि हाल में 10-वर्षीय सरकारी

बॉन्ड यील्ड 6.6% तक गई थी, लेकिन अब यह 6.4–6.5% पर है. उनके अनुसार, इसमें और गिरावट की संभावना है.

उन्होंने कहा, “दूसरे हाफ में बॉन्ड सप्लाई, RBI की नीति और फिस्कल डेफिसिट को लेकर चिंताएं हैं. लेकिन हमें विश्वास है कि हम फिस्कल डेफिसिट को

कंट्रोल में रखेंगे और दूसरी छमाही का बॉरोइंग प्रोग्राम अपरिवर्तित रहेगा.” नागेश्वरन का मानना है कि मौजूदा यील्ड स्तरों पर भारतीय बॉन्ड निवेशकों के लिए बेहतर अवसर हैं.

भारतीय रुपया ने सोमवार सुबह डॉलर के मुकाबले नया ऐतिहासिक निचला स्तर छू लिया. शुरुआती कारोबार में रुपया 10 पैसे कमजोर होकर 88.49 प्रति डॉलर तक गिर गया.

यह अब तक का सबसे निचला स्तर है. इससे पहले रुपया 88.31 के स्तर पर बंद हुआ था. एशियाई करेंसी बाजार को हुआ क्या है- रुपये की गिरावट का एक बड़ा कारण एशियाई करेंसीज में कमजोरी रही.

ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार, दक्षिण कोरियाई वॉन 0.22%, थाई बहत 0.16% और इंडोनेशियाई रुपैया 0.08% कमजोर रहे. इसके अलावा सिंगापुर डॉलर, जापानी येन और हांगकांग डॉलर भी 0.05% गिरे. रिजनल करेंसीज में यह दबाव भारतीय रुपये को और कमजोर करने वाला साबित हुआ.

करेंसी एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई नीतियां भी रुपये पर भारी पड़ रही हैं. हाल ही में अमेरिकी प्रशासन ने भारतीय गुड्स पर टैरिफ बढ़ाया है और H1B वीजा फीस $100,000 कर दी है. इससे न सिर्फ भारत के एक्सपोर्ट कॉस्ट बढ़े हैं बल्कि IT सेक्टर पर भी सीधा असर पड़ सकता है.

रेमिटेंस और इक्विटी फ्लो पर खतरा-H1B फीस में बढ़ोतरी से भारतीय IT कंपनियों को झटका लग सकता है. इससे अमेरिका से आने वाले रेमिटेंस पर असर पड़ने का खतरा है.

वहीं, IT सेक्टर में संभावित इक्विटी आउटफ्लो भी रुपये पर दबाव डाल सकता है. ऐसे समय में जब फॉरेन इनफ्लो पहले ही कमजोर रहे हैं, यह दोहरा झटका रुपये की कमजोरी का बड़ा कारण बना है.

डॉलर इंडेक्स और फॉरेक्स आउटलुक-हालांकि, करेंसी एक्सपर्ट्स का मानना है कि डॉलर इंडेक्स कमजोर पड़ रहा है. CR Forex Advisors के मैनेजिंग डायरेक्टर अमित पाबरी के अनुसार, “डॉलर इंडेक्स के दबाव में आने से रुपया मौजूदा स्तर से कुछ रिकवरी दिखा सकता है. इसके लिए 87.90–88.00 के बीच मजबूत सपोर्ट मौजूद है.”

कुल मिलाकर, रुपया घरेलू और वैश्विक फैक्टर्स के दबाव में है. एशियाई करेंसीज की कमजोरी, अमेरिकी टैरिफ और H1B फीस में बढ़ोतरी ने इसे रिकॉर्ड लो पर धकेल दिया है. आगे चलकर डॉलर इंडेक्स और विदेशी फंड फ्लो ही रुपये की दिशा तय करेंगे.