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सोनिया गांधी को लेकर बुरी खबर आई सामने आखिर नेशनल हेराल्ड केस में हुई इतने साल की

नेशनल हेराल्ड केस फिर सुर्ख़ियों में है. इस मामले में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कुछ अन्य कांग्रेस नेताओं को प्रवर्तन निदेशालय ने क्यों कठघरे में खड़ा

किया तो पहले नेशनल हेराल्ड के बारे में जानना ज़रूरी है. जिसने भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास पढ़ा होगा, वो इस अख़बार से परिचित ज़रूर होगा.

नेशनल हेराल्ड अंग्रेज़ी का एक अख़बार था, जिसे 1938 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने शुरू किया था. इस अख़बार को प्रकाशित करने वाली कंपनी का नाम था

Associated Journals Limited (AJL), जिसकी स्थापना 1937 में हुई थी. इस कंपनी में नेहरू समेत 5000 स्वतंत्रता सेनानी शेयर होल्डर थे.

ये कंपनी दो और अख़बार प्रकाशित करती थी, हिंदी में नवजीवन और उर्दू में क़ौमी आवाज़. आज़ादी की लड़ाई के दौरान नेशनल हेराल्ड एक राष्ट्रवादी अख़बार के तौर पर स्थापित हुआ,

जिस पर ब्रिटिश सरकार ने 1942 में पाबंदी भी लगाई और उसे बंद करा दिया, लेकिन तीन साल बाद ये फिर शुरू हो गया.

आज़ादी के बाद ये अख़बार कांग्रेस के मुखपत्र की तरह काम करता रहा और कई बड़े-बड़े पत्रकारों ने इसमें काम किया. इसकी बड़ी प्रतिष्ठा रही.

2010 तक इस कंपनी के 5000 में से सिर्फ़ 1,057 शेयरहोल्डर ही रह गए थे., लेकिन देश की आज़ादी के साथ इतने क़रीब से जुड़ा ये अख़बार समय के साथ-साथ मुनाफ़े की दौड़ से भी बाहर होता गया.

2008 में वित्तीय कारणों से नेशनल हेराल्ड और बाकी दोनों अख़बार बंद कर दिए गए. विवाद तब शुरू हुआ जब 2012 में बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने

एक आपराधिक शिकायत दर्ज की. इसमें उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी समेत कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं पर आरोप लगाया कि वो Young Indian Ltd (YIL) द्वारा Associated Journals Ltd के अधिग्रहण में विश्वासघात और धोखाधड़ी में शामिल हैं.