दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से उड़ान भरने वाली इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट अपने शेड्यूल के मुताबिक मुंबई के लिए रवाना हुई थी.
इस फ्लाइट में कुल 83 पैसेंजर और केबिन क्रू मौजूद थे. प्लेन में मौजूद ज्यादातर पैसेंजर अपने दफ्तर के काम या फिर पारिवारिक वजहों से मुंबई जा रहे थे.
इनमें से किसी को जरा भी अंदाजा नहीं था कि यह सफर उनकी जिंदगी का सबसे भयावह सफर बनने वाला है. वे सभी मुंबई की जगह दुश्मन देश के ऐसे एयरपोर्ट पर लैंड करने वाले हैं,
जहां पर उनकी जिंदगी का सौदा होने वाला है. 10 सितंबर 1976 की इस घटना में इंडियन एयरलाइंस का प्लेन आसमान में अपनी अंतिम ऊंचाई तक पहुंच चुका था.
अचानक छह युवक अपनी-अपनी सीटों से उठे. उन्होंने एक-दूसरे को इशारों ही इशारों में बात की और अलग-अलग दिशा में निकल पड़े.
दो युवक तेजी से कॉकपिट की ओर बढ़े, जबकि बाकी चार प्लेन के अलग-अलग हिस्सों में जाकर खड़े हो गए. कोई कुछ इस बारे में सोच पाता, इससे पहले दोनों युवक कॉकपिट के भीतर घुस चुके थे.
कॉकपिट में मौजूद कैप्टन बीएन रेड्डी और को-पायलट आरएस यादव कुछ बोलते, इससे पहले दोनों युवकों ने पिस्तौल दोनों पायलट के माथे पर सटा दीं.
हाईजैकर लीबिया ले जाना चाहते थे प्लेन
थोड़ा इंतजार करने के बाद बाहर खड़े युवकों ने भी अपने हथियार बाहर निकाल लिए और हवा में लहाराते हुए हाईजैक-हाईजैक चिल्लाने लग गए.
पूरे प्लेन में अफरातफरी मच गई. प्लेन पर पूरी तरह से काबू पाने के बाद हाईजैकर्स ने पायलट से प्लेन को लीबिया ले चलने के लिए कहा. कैप्टन रेड्डी ने संयम रखते हुए स्थिति संभालने की कोशिश की.
उन्होंने हाईजैकर्स को समझाने की कोशिश की कि यह फ्लाइट केवल दिल्ली से मुंबई के लिए निर्धारित थी और फ्यूल की मात्रा भी उतनी ही थी. प्लेन काफी देर से एक ही दिशा में घूम रहा है, इसलिए अब उसमें इतना ईंधन भी नहीं बचा है कि वह मुंबई तक पहुंच सके.
केवल दिल्ली या जयपुर तक जा सकता है प्लेन
कैप्टन रेड्डी ने हाईजैकर्स को बताया कि प्लेन में सिर्फ इतना ही फ्यूल बचा है कि वह दिल्ली या जयपुर तक ही उड़ान भर सकता है.
लेकिन, हाइजैकर्स किसी भी सूरत में प्लेन को भारत की ज़मीन पर उतरने नहीं देना चाहते थे. कुछ देर तक आपस में बात करने के बाद उन्होंने प्लेन को पाकिस्तान ले चलने का फरमान सुना दिया.
कैप्टन रेड्डी ने जैसे-तैसे मौका निकाल कर दिल्ली एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) को मैसेज भेज दिया कि प्लेन हाईजैक हो चुका है और अब पाकिस्तान की ओर बढ़ रहा है. यह मैसेज मिलते ही भारत के सुरक्षा तंत्र में हड़कंप मच गया. रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय दोनों सक्रिय हो गए.
भारत की चेतावनी के बाद हरकत में आया पाकिस्तान
थोड़ी देर बाद इंडियन एयरलाइंस का यह प्लेन कराची एयरपोर्ट पर उतर चुका था. लैंडिंग के बाद प्लेन को सूनसान इलाके में लेकर खड़ा कर दिया गया.
प्लेन के दरवाजे अभी भी बंद थे और पाकिस्तानी सेना ने उसे चारों तरफ से घेर रखा था. हाईजैकर्स ने कराची में उतरने के बाद कोई बातचीत शुरू नहीं की. इस बीच, नई दिल्ली से भारत सरकार ने इस घटना को लेकर इस्लामाबाद को कड़े शब्दों में मैसेज भेजा.
मैसेज में कहा गया कि यदि एक भी भारतीय पैसेंजर या क्रू मेंबर को नुकसान पहुंचा, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे. भारत की चेतावनी का असर हुआ. पाकिस्तान ने जल्द ही अपने सैन्य अधिकारियों को स्थिति संभालने का आदेश दिया.
हाईजैकर्स की मेहमाननवाजी में छिपी थी यह चाल
पाकिस्तानी सेना ने पहले तो बेहद नरम रुख अपनाया. उन्होंने हाईजैकर्स को भरोसा दिलाया कि वे उनकी मांगों पर विचार कर रहे हैं.
इसके बाद उन्हें बिरयानी, जूस और कोल्ड ड्रिंक जैसे खाने पीने की चीजें भेजना शुरू कर दीं. हाईजैकर्स ने राहत की सांस ली. उन्हें लगा कि अब सब कुछ उनके कंट्रोल में है. लेकिन असल में, पाकिस्तानी सेना ने इस मेहमाननवाजी में एक खतरनाक रणनीति छिपी हुई थी.
कुछ ही देर में हाईजैकर्स को चक्कर आने लगे. उनके हाथों में पकड़ी बंदूकें धीरे-धीरे नीचे गिरने लगीं. दरअसल, जिस खाने और पेय पदार्थ को वे खुशी-खुशी खा-पी रहे थे, उसमें नींद और बेहोशी की दवा मिली हुई थी.
फिर शुरू हुआ पाकिस्तानी कमांडो का ऑपरेशन
जैसे ही हाईजैकर्स बेहोश हुए, पाकिस्तानी कमांडो यूनिट ने प्लेन को चारों तरफ से घेर लिया. कुछ ही पलों में कमांडो प्लेन में दाखिल हुए और सभी छह हाईजैकर्स को बिना किसी गोलीबारी के काबू में कर लिया.
पकड़े गए आतंकियों की पहचान एम अहसान, सैयद अब्दुल हमीद दीवानी, अब्दुल राशिद मलिक, सैयद एम रफीक, ख्वाजा गुलाम और गुलाम रसूल के तौर पर हुई.
ऑपरेशन पूरा होने के बाद पाकिस्तान ने प्लेन को सभी पैसेंजर के साथ भारत के लिए रवाना कर दिया. अगले दिन, 11 सितंबर 1976 को इंडियन एयरलाइंस की यह फ्लाइट सभी 83 यात्रियों के साथ दिल्ली लौट आई.