बिहार में महागठबंधन, जिसे ‘इंडिया’ ब्लॉक कहा जाता है, के भीतर तनाव और खींचतान स्पष्ट रूप से देखी जा रही है। इसे समाप्त करने के लिए कांग्रेस के अशोक गहलोत ने
लालू प्रसाद के परिवार की सभी शर्तें मानकर स्थिति को संभाला। इसके बाद महागठबंधन की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई,
जिसमें तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया। हालांकि, एनडीए की ओर से अभी तक कोई साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं हुई है और
न ही मुख्यमंत्री पद के लिए किसी उम्मीदवार की घोषणा की गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं, जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया है कि
मुख्यमंत्री का निर्णय चुनाव के बाद लिया जाएगा। भाजपा के प्रवक्ता जैसे रविशंकर प्रसाद और राजीव प्रताप रूड़ी बार-बार यह कह रहे हैं कि चुनाव के बाद नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे,
लेकिन इन बयानों का कोई खास महत्व नहीं है। केवल अमित शाह या प्रधानमंत्री मोदी ही इस पर अंतिम निर्णय ले सकते हैं। भाजपा के कई नेता मानते हैं कि यदि नीतीश कुमार का
नाम नहीं लिया गया, तो एनडीए को नुकसान होगा, जिसमें भाजपा को सबसे अधिक नुकसान हो सकता है। नीतीश के समर्थक भाजपा को वोट देने के बजाय घर पर रह सकते हैं या राजद को वोट दे सकते हैं।
भाजपा को चुनाव से पहले विवाद सुलझाना होगा
नीतीश कुमार के समर्थकों में भाजपा के प्रति अविश्वास बढ़ गया है। इसका एक कारण यह है कि भाजपा ने नीतीश को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं घोषित किया है,
जबकि वे बार-बार यह कह रहे हैं कि वे भाजपा का साथ नहीं छोड़ेंगे। इसके अलावा, 2020 के चुनाव में चिराग पासवान ने भाजपा की शह पर गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ा था, जिससे नीतीश के समर्थकों में और भी अविश्वास बढ़ा है।
जदयू के समर्थकों को यह भी लगता है कि भाजपा इस बार उनके उम्मीदवारों की मदद नहीं कर रही है। भाजपा को इस अविश्वास को दूर करने के लिए चुनाव से पहले इस विवाद को सुलझाना होगा।