माफिया अतीक अहमद ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) कोर्ट में पहुंचते ही गुहार लगाई…हुजूर मुझे चक्कर आ रहा है। कुर्सी पर बैठने की अनुमति दे दी जाए। बाद में भी अतीक ने खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए रहम की गुहार लगाई।वीडियो कान्फ्रेंसिंग की सुविधा होने के बावजूद साबरमती जेल से यहां बुलाने पर एतराज भी जताया।
अशरफ ने भी कहा कि वह किसी मामले में दोषी नहीं ठहराया गया, बावजूद इसके पुलिस उसे हथकड़ी लगाकर कोर्ट लाई है। दोनों की ओर से आधा दर्जन वकीलों ने भी उनका पक्ष रखा। इसके अलावा साबरमती जेल से बार-बार प्रयागराज लाने पर भी एतराज जताया।
सीजेएम कोर्ट ने अतीक की हालत देखते हुए उसे कुर्सी पर बैठने की अनुमति दे दी। अशरफ कटघरे में खड़ा रहा। अतीक ने आगे भी अदालत से कहा कि उसे दो मिनट सुन लिया जाए। कहा, उसे जेल में तन्हाई में रखा गया है। उसके आसपास कोई नहीं है। वह बीमार है।
मोटापा, किडनी में संक्रमण, ब्लड प्रेशर सहित कई बीमारियां हैं, जिससे वह परेशान है। कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जिन्हें वह सबके सामने नहीं बता सकता है। पुलिस उसे बाथरूम में भी अकेले नहीं जाने देती है। उसे 13 सौ किलोमीटर दूर से यहां लाया गया है, जबकि इसकी जरूरत नहीं थी।
पुलिस चाहती तो वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए भी पूछताछ कर सकती थी। वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर साबरमती जेल में बंद है। लिहाजा, कोई भी आदेश करने से पूर्व इन बातों का ध्यान रखा जाए। अधिवक्ता बोले-जेल से कैसे हत्या का षड्यंत्र रच सकतै हैं अतीक-अशरफ
अतीक और अशरफ के अधिवक्ताओं ने कोर्ट के समक्ष दलील दी कि जिस वक्त उमेश पाल हत्याकांड हुआ, उस समय अतीक साबरमती और अशरफ बरेली जेल में थे। वहां से दोनों षड्यंत्र कैसे रच सकते हैं। दोनों के खिलाफ ऐसा कोई प्रमाण भी नहीं है, जिससे उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में लेकर पुलिस को
पूछताछ के लिए दिया जा सके। हालांकि, सरकारी अधिवक्ताओं ने पुरजोर कहा कि हत्याकांड में संलिप्तता के उनके पास पुख्ता साक्ष्य हैं। दरअसल, कोर्ट में अतीक-अशरफ की ओर से पहले अधिवक्ता मनीष खन्ना ने पहले चरण की बहस पूर्वाह्न 11.15 बजे शुरू की, जो दोपहर 12 बजे तक चली।
मनीष खन्ना के बहस पूरी कर लेने पर अतीक ने कहा कि उसके एक अधिवक्ता हाईकोर्ट से आ रहे हैं, रास्ते में हैं। उन्हें थोड़ा और समय दिया दिया। करीब आधे घंटे के इंतजार के बाद कोर्ट दोबारा शुरू हुई तो आपत्ति जताई कि आपके वकील देर कर रहे हैं। लिहाजा, वह न्यायिक अभिरक्षा में लेने का आदेश पारित करेगी।
देर से पहुंचे अतीक के दूसरे अधिवक्ता. कोर्ट यह कहकर उठ गई। इसके थोड़ी देर ही में अतीक के दूसरे अधिवक्ता दया शंकर मिश्रा पहुंच गए। अतीक ने कोर्ट से गुहार लगाई कि उनके दूसरे अधिवक्ता को सुन लिया जाए। कोर्ट बैठी और फिर एक घंटे तक उनके तर्कों को सुना।
तर्क दिया गया कि पुलिस के पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है जो दोनों आरोपियों को आपराधिक षड्यंत्र के दायरे में लाती है। दोनों जेल में हैं। ऐसे में उनके साजिश में शामिल होने का सवाल नहीं उठता। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई आदेशों का हवाला भी दिया।
दोबारा साबरमती जेल से प्रयागराज लाने पर जताई आपत्ति
अतीक के अधिवक्ताओं ने यह भी कहा कि पुलिस चाहती तो 28 मार्च को पूछताछ के लिए अपनी अभिरक्षा में लिए जाने की मांग कर सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। अभियोजन पक्ष की ओर से कहा गया कि पुलिस को
कॉल डिटेल के साथ कई ऐसे दस्तावेज मिले हैं, जो दोनों को आपराधिक षड्यंत्र के दायरे में ला रहे हैं। पुलिस को अभी कई और सबूत जुटाने हैं। लिहाजा, दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में लेकर पुलिस अभिरक्षा में देना जरूरी है। विवेचक की ओर से 23 मार्च की अर्जी पर ही वारंट बी जारी करते हुए पुलिस अभिरक्षा में दिए जाने की मांग कर चुकी है। लिहाजा, पुलिस अभिरक्षा की मांग मंजूर की जाए। इसके बाद कोर्ट ने चार दिन की पुलिस अभिरक्षा मंजूर कर ली।